2015 Govardhan Puja Date :12th November 2015 (Thursday)
गोवर्धन पूजन विधि
दीपावली के बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा पर उत्तर भारत में मनाया जाने वाला गोवर्धनपूजा पर्व आज मनाया जाएगा. इसमें हिंदू धर्मावलंबी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की अल्पना (तस्वीर या प्रतिमूर्ति) बनाकर उनका पूजन करते है. इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले गिरिराज भगवान [पर्वत] को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है.
पूजन व्रत कथा
गोवर्धन पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है. उससे पूर्व ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थी. मगर भगवान कृष्ण ने गोकुल वासियों को तर्क दिया कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं प्राप्त होता. वर्षा करना उनका कार्य है और वह सिर्फ अपना कार्य करते हैं जबकि गोवर्धन पर्वत गौ-धन का संवर्धन एवं संरक्षण करता है, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है. इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए.
इसके बाद इंद्र ने ब्रजवासियों को भारी वर्षा से डराने का प्रयास किया, पर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों को उनके कोप से बचा लिया. इसके बाद से ही इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का विधान शुरू हो गया है. यह परंपरा आज भी जारी है.
माना जाता है कि भगवान कृष्ण का इंद्र के मान-मर्दन के पीछे उद्देश्य था कि ब्रजवासी गौ-धन एवं पर्यावरण के महत्व को समझें और उनकी रक्षा करें. आज भी हमारे जीवन में गायों का विशेष महत्व है. आज भी गायों के द्वारा दिया जाने वाला दूध हमारे जीवन में बेहद अहम स्थान रखता है. लेकिन यह एक अफसोस की बात है कि जिस गाय को हम मां के समान मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं उसकी देखभाल की हमें कोई चिंता नहीं.
यूं तो देश में गो-हत्या एक अपराध है लेकिन इसके बावजूद कई मौकों पर देश के कई हिस्सों में हम गैर कानूनी गो-हत्या की खबरें सुनते हैं. गो-मांस के शौकीनों को समझना चाहिए कि वह कितनी महत्वपूर्ण जीव की हत्या कर अपना पेट भरते हैं. इस गोवर्धन पूजा के अवसर पर आइए एक संकल्प लें कि अपने स्तर पर हम सभी गो-रक्षा की भरपूर कोशिश करेंगे और सिर्फ गाएं ही नहीं संपूर्ण प्रकृति की रक्षा के लिए तत्पर रहेंगे.
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